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बॉम्बे स्कूल में अब बेहतर तरीके से सीखने और सिखाने के लिए, Google Workspace और Chromebook इस्तेमाल किए जाते हैं

बैकग्राउंड

बॉम्बे, न्यूज़ीलैंड के आस-पास की दुनिया बदल रही है. साल 1863 में अपनी स्थापना के बाद से यह शहर एक मज़बूत कृषि समुदाय के रूप में विकसित हुआ है. यह ऑकलैंड से पच्चीस मील दूर दक्षिण-पूर्व की ओर तलहटी में स्थित है. पिछले दशक में, बड़े शहरों के उपनगरीय इलाकों का विस्तार बॉम्बे तक हुआ है. इस वजह से, स्कूल में ज़्यादा बच्चों के नाम दर्ज हो रहे हैं. जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ती गई, स्थानीय स्कूल बोर्ड ने अपनी परंपरागत पहचान को बनाए रखते हुए, अपने पाठ्यक्रम की समीक्षा करने और स्कूल में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी को मॉडर्न बनाने का फ़ैसला किया. इसके लिए, उन्होंने एक प्लान बनाया. बॉम्बे स्कूल के प्रिंसिपल पॉल पीटरसन और स्कूल बोर्ड को एक ऐसे प्लान की ज़रूरत थी जो 21वीं सदी में, उनके किंडरगार्टन से लेकर आठवीं कक्षा तक के 384 छात्र-छात्राओं को सफलता दिलाए.

चुनौती

तीन साल पहले, बॉम्बे स्कूल के कंप्यूटर रूम में 15 कंप्यूटर थे, यानी करीब 25 छात्र-छात्राओं पर सिर्फ़ एक कंप्यूटर. हर बच्चा हफ़्ते में सिर्फ़ एक घंटे के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकता था.

स्कूल मैनेजमेंट जानता था कि उन्हें अपने प्लान में सीखने-सिखाने के लिए, टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर ज़्यादा फ़ोकस करना होगा, लेकिन ऐसा करने के लिए खर्च होने वाले पैसों के साथ ही, माता-पिता और शिक्षकों का विरोध एक बड़ी परेशानी थी.

हल

काफ़ी शोध के बाद, पीटरसन और स्कूल बोर्ड ने पाठ्यक्रम के साथ-साथ स्कूल में शिक्षकों के पढ़ाने के तरीकों और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में बदलाव लाने वाला प्लान तैयार किया. इस प्लान के तहत, प्रमुख सदस्यों ने 'अपना डिवाइस लाएं (BYOD)' प्रोग्राम शुरू करने का फ़ैसला लिया. Google Workspace for Education की सदस्यता के साथ Chromebook खरीदना और Chrome Education का लाइसेंस लेना किफ़ायती, भरोसेमंद, और सुरक्षित विकल्प साबित हुआ. स्कूल ने तय किया कि एक रीसेलर की मदद से स्कूल, Chromebook पैकेज खरीदने में हर छात्र-छात्रा की मदद करेगा. इस पैकेज में Chromebook लैपटॉप, Chrome Education का लाइसेंस, हेडफ़ोन, और लैपटॉप बैग शामिल हैं.

स्कूल के डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन प्लान को लागू करने के लिए. बॉम्बे स्कूल ने चार मुख्य फ़ील्ड पर काम किया: * टेक्नोलॉजी के बारे में कर्मचारियों की जानकारी बढ़ाई और उनके प्रोफ़ेशनल डेवलपमेंट पर ध्यान दिया * माता-पिता को सिखाने और डिवाइसों को खरीदने की उनकी क्षमता को प्राथमिकता दी * टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए भरोसेमंद इन्फ़्रास्ट्रक्चर बनाया * पढ़ाने के तरीके और कक्षा का माहौल बदला

शिक्षकों को समझाना

अपने प्लान के पहले हिस्से पर काम करने के लिए, पीटरसन और उनकी टीम ने सभी कर्मचारियों के साथ, ग्रुप और 1:1 मीटिंग का आयोजन किया. इस तरह उन्होंने शिक्षकों से अपने प्लान के बारे में बात की और उन्हें सिखाया. हालांकि, ऐसा करने से पहले उन्हें यह समझना था कि शिक्षकों को टेक्नोलॉजी के बारे में कितनी जानकारी है, वे इसका इस्तेमाल किस तरह करते हैं, और वे टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में किन चुनौतियों का सामना करते हैं.

इसे समझने के लिए एक सर्वे कराया गया. इसमें पता लगाया गया कि शिक्षकों और मैनेजमेंट को टेक्नोलॉजी के बारे में कितनी जानकारी है. इसके अलावा, वे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने में कितने सहज हैं, इसका भी आकलन किया गया. इस सर्वे के नतीजे के तौर पर बहुत सारे जवाब मिले जिनकी मदद से, प्रोफ़ेशनल डेवलपमेंट (पीडी) प्लान पर काम करने के लिए सहमति बनी. इस प्लान के ज़रिए ‘जल्द ही सीखने वाले’ लोगों के साथ-साथ उन लोगों की पहचान भी की गई जो व्यक्तिगत तौर पर सहायता मिलने से और बेहतर कर सकते थे.

इस प्लान के साथ शुरुआत में जुड़ने वाले शिक्षकों को प्रोफ़ेशनल डेवलपमेंट के लिए बाहरी संसाधन दिए गए. इनमें से पांच शिक्षक, Google सर्टिफ़ाइड एजुकेटर बने. इससे, बाद में जो शिक्षक जुड़े उनकी बुनियादी ट्रेनिंग के लिए, संसाधन मिल गए. साथ ही, ज़्यादा बेहतर जानकारी वाले उपयोगकर्ताओं के लिए, लेसन से जुड़े प्रैक्टिकल आइडिया मिले. शुरुआत में ही सीखने वाले शिक्षकों को टेक्नोलॉजी के जानकार के तौर पर पहचान दी गई. इससे, वे लोग अपने साथी शिक्षकों को सिखाने लगे. इसके लिए शिक्षक, ग्रुप पीडी सेशन और 1:1 मीटिंग में अपनी जानकारी शेयर करने लगे.

कर्मचारियों को Google Workspace और Chromebook का इस्तेमाल रोज़ाना करने के लिए बढ़ावा देकर, उनके कौशल और योग्यता को बढ़ाना भी इस प्लान का अहम हिस्सा था. शिक्षकों को हर मीटिंग में अपना Chromebook साथ लाने के लिए कहा गया. साथ ही, मीटिंग के मिनट, मीटिंग से जुड़ी जानकारी, और शिक्षा से जुड़े तरीकों के बारे में Google Doc पर साथ मिलकर काम करने के लिए कहा गया. धीरे-धीरे, उन्होंने देखा कि बॉम्बे स्कूल के सभी लेवल के कर्मचारियों में Chromebook और Google Workspace के सभी ऐप्लिकेशन को इस्तेमाल करने का आत्मविश्वास और योग्यता बढ़ी है.

पीटरसन अपनी बात खत्म करते हुए कहते हैं, “यह हम सबकी यात्रा है. यह डरावनी भी है और मज़ेदार भी, क्योंकि जब आप अपने दायरे से बाहर निकलते हैं, तब ही कुछ नया सीखते हैं.”

“Chromebook और Google Workspace for Education ने बॉम्बे स्कूल को, सीखने-सिखाने के लिए एक बेहतरीन प्लैटफ़ॉर्म दिया.”

पॉल पीटरसन, प्रिंसिपल, बॉम्बे स्कूल

इस बदलाव के लिए माता-पिता को तैयार करना

बच्चों को डिवाइस देने को लेकर उलझन में पड़े हुए माता-पिता को समझाने के लिए, स्कूल के मैनेजमेंट ने बड़े पैमाने पर कैंपेन चलाया. इसमें माता-पिता से 1:1 मीटिंग, ग्रुप में चर्चाएं, और अभिभावक-शिक्षक मीटिंग की गईं. पीटरसन कहते हैं, “शुरुआत में, छात्र-छात्राओं को लैपटॉप देने का काफ़ी विरोध हुआ था.” “हमें माता-पिता को समझाने में बहुत समय लगा. हमने उन्हें समझाया कि Chromebook और Education लाइसेंस किस तरह काम करते हैं. किस तरह वे अपने बच्चे के ब्लॉग, असाइनमेंट, और गृहकार्य पर नज़र रख सकते हैं. किस तरह डिजिटल लर्निंग, छात्र-छात्राओं की शिक्षा को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है और माता-पिता को अपने बच्चे की प्रोग्रेस के बारे में पहले से ज़्यादा जानकारी दे सकती है.” साथ ही, पैसों की तंगी से जूझ रहे परिवारों को गैर सरकारी संगठनों से सहायता दिलाई गई.

माता-पिता की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए, स्कूल ने अपने चार पेज के न्यूज़लेटर के लिए प्रिंटेड की जगह डिजिटल फ़ॉर्मैट का इस्तेमाल शुरू किया. इसके लिए, Google Forms का इस्तेमाल किया गया. न्यूज़लेटर में, साथ मिलकर सीखने-सिखाने और किसी भी जगह से पढ़ने की सुविधा से जुड़ी स्टोरी के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के असाइनमेंट के वीडियो भेजे जाते. इन न्यूज़लेटर में सर्वे भी शामिल किए जाते थे, ताकि माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई के बारे में अपनी राय दे सकें. साथ ही, स्कूल को उनके सुझाव और आइडिया के बारे में पता हो.

इन्फ़्रास्ट्रक्चर बनाना

आखिर में, पूरे कैंपस में वायरलेस ऐक्सेस पॉइंट बनाए गए, ताकि स्कूल के नेटवर्क में जोड़े गए सैकड़ों नए डिवाइस काम कर सकें. जब से स्कूल ने Google Workspace को अपना नॉलेज हब बनाया है और Chromebook को बेहतर तरीके से मैनेज करने के साथ ही, इनके इस्तेमाल पर निगरानी रखने के लिए, Chrome Education का लाइसेंस लिया है, तब से स्कूल ने सर्वर और बाहरी आईटी सहायता पर खर्च होने वाले पैसों में से 40,000 डॉलर से ज़्यादा की बचत की है. पीटरसन याद करते हुए बताते हैं, “हमने बहुत सारे पैसे बचाए थे.” “इसमें बहुत मेहनत नहीं लगी.”

बॉम्बे स्कूल के मैनेजमेंट से जुड़े लोग जानते थे कि BYOD प्रोग्राम शुरू करने के बाद, उन्हें यह पक्का करना होगा कि स्कूल में इस्तेमाल किए जाने वाले सभी नए डिवाइसों को सही और सुरक्षित तरीके से मैनेज किया जाए. Chromebook Education का लाइसेंस लेने से स्कूल को ज़रूरी ऐप्लिकेशन को पहले से इंस्टॉल करने और जिन ऐप्लिकेशन की ज़रूरत न हो उन्हें ब्लॉक करने का विकल्प मिला. साथ ही, Chromebook का इस्तेमाल कौन कर सकता है यह तय करने, खोए या चोरी हुए Chromebook को बंद करने, साइटों को ब्लैकलिस्ट करने, और छात्र-छात्राओं को जोड़ने या हटाने का विकल्प भी मिला. अपने प्लान के इस हिस्से पर पीटरसन कहते हैं, “एक स्कूल के तौर पर यह पक्का करना हमारी प्राथमिकता है कि हम स्कूल में डिवाइसों का डिप्लॉयमेंट सुरक्षित तरीके से करें और उन्हें आसानी से मैनेज करें. हम यह जानना चाहते थे कि हमारे बच्चे क्या ऐक्सेस करते हैं, ताकि ज़रूरत पड़ने पर इसे कंट्रोल भी कर सकें. Education के लाइसेंस से इसमें मदद मिली. हम अपने स्कूल में ऐसे किसी भी डिवाइस के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देते जिसके लिए, Education का लाइसेंस न लिया गया हो”.

फ़ायदे

अपने हिसाब से पढ़ाई करने की सुविधा

जब सभी छात्र-छात्राओं ने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू कर दिया, तो शिक्षकों को भी फ़ायदा हुआ. अब वे हर बच्चे को उसके हिसाब से दिशा-निर्देश दे सकते हैं.

पीटरसन कहते हैं, “जब हम अपने हिसाब से पढ़ाई करने की सुविधा की बात करते हैं, तो मैं स्कूल के दिनों के अपने अनुभव शेयर करता हूं.” “उदाहरण के लिए, जब मेरे शिक्षक, गुणा करना सिखाते थे और मुझे कुछ समझ नहीं आता था, तब मैं अपनी झिझक के कारण उनसे दोबारा नहीं पूछता था. क्योंकि, मैं नहीं चाहता था कि मेरे दोस्त मुझे बेवकूफ़ समझें. टेक्नोलॉजी के बारे में एक सबसे अच्छी बात यह है कि यह इस तरह की परेशानियों को दूर करती है. अगर आज की तारीख में मुझे गुणा करना समझ नहीं आए, तो मैं ऑनलाइन सीख सकता हूं. मैं मदद मांग सकता हूं. मैं कहीं भी, अपनी सुविधा के मुताबिक सीख सकता हूं.” बॉम्बे स्कूल के, चौथी कक्षा और उससे ऊपर की कक्षा के तकरीबन हर छात्र-छात्रा के पास अब एक Chromebook है. छात्र-छात्रा अब अपने हिसाब से सीख सकते हैं. साथ ही, मदद की ज़रूरत पड़ने पर, शिक्षक से सहायता मांग सकते हैं.

आज के समय में, ढेर सारे डिजिटल टूल की मदद से, छात्र-छात्राएं पढ़ाई करने के बेहतरीन तरीके अपना रहे हैं. एक बच्चा कहता है, “हमने माओरी सभ्यता में की जाने वाली किलाबंदी को देखते हुए, स्थानीय माओरी संस्कृति के बारे में पढ़ा.” “हमने काफ़ी शोध किया, जिससे मिली सारी जानकारी को Google Docs और Google Slides की मदद से इकट्ठा किया और बेहतर फ़ॉर्मैट में तैयार किया. साथ ही, उन्हें Google Drive पर सेव और शेयर किया. इसके बाद, हमने Minecraft में माओरी किलाबंदी पर आधारित गेम बनाया. इसके लिए, हमें गणित और इंजीनियरिंग के नए कौशल सीखने की ज़रूरत थी. अंत में, हमने 3D प्रिंटर की मदद से माओरी किले का एक मॉडल प्रिंट किया!” छात्र-छात्राओं के पास अब नए और अनोखे तरीकों से दुनिया भर की जानकारी हासिल करने के लिए टेक्नोलॉजी है. साथ ही, बॉम्बे स्कूल के डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन की मदद से छात्र-छात्राओं को अपने हिसाब से पढ़ाई करने की सुविधा का फ़ायदा भी मिल रहा है. इससे, छात्र-छात्राएं नए कौशल सीख रहे हैं. इसके अलावा, शिक्षक भी छात्र-छात्राओं की खास रुचियों के हिसाब से पाठ्यक्रम तैयार कर पा रहे हैं.

नतीजे

आखिर में, पीटरसन कहते हैं, “यह सब हमने इसलिए किया, ताकि छात्र-छात्राओं को 21वीं सदी के हिसाब से आगे बढ़ने के लिए तैयार कर सकें.” बॉम्बे स्कूल ने सीखने-सिखाने के लिए जब से टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू किया है, तब से उनके छात्र-छात्राओं की परफ़ॉर्मेंस काफ़ी बेहतर हुई है. उदाहरण के लिए, 2014 की परीक्षा में सभी सीनियर बच्चों का स्कोर अगर मिलकर देखें तो 78 पर्सेंटाइल था. यही स्कोर 2016 में 90 पर्सेंटाइल हो गया. इसके साथ ही, आठवीं कक्षा के 90% छात्र-छात्राओं को पढ़ने, लिखने, और गणित के विषय में नैशनल स्टैंडर्ड से ऊपर के ग्रेड मिले हैं. दिव्यांग छात्र-छात्राओं की भी पाठ्यक्रम में दिलचस्पी बढ़ी है और वे भी पहले से बेहतर परफ़ॉर्म कर रहे हैं.

आज, बॉम्बे स्कूल के छात्र-छात्राएं टेक्नोलॉजी का उपभोग करने के बजाय, नई चीज़ें बनाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके अलावा, टेक्नोलॉजी की मदद से पढ़ाई भी बेहतर तरीके से कर रहे हैं. जब पीटरसन, बॉम्बे स्कूल के ट्रांसफ़ॉर्मेशन प्लान को शुरू करने में आई बाधाओं और उन चुनौतियों का सामना करने के तरीकों के बारे में सोचते हैं, तो कहते हैं: "हर प्रिंसिपल, हर लीडर को खुद से पूछना होगा, 'मेरा सपना क्या है?' अगर आप आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आप हर परेशानी, हर समस्या का हल निकाल लेंगे. आपको कोई नहीं रोक पाएगा. कोई भी नहीं.”

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